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________________ १२२ भारतीय संवतों का इतिहास कि इस प्रकार के पर्याप्त अभिलेखीय साक्ष्य हैं जो गुप्त संवत् का ३१६ ई. में चन्द्रगुप्त द्वारा आरम्भ किये जाने की पुष्टि करते हैं। अल्बेरूनी ने यद्यपि गप्त व वलभी दो अलग-अलग संवतों का उल्लेख किया है। १८वीं सदी ई० के विद्वान कनिघम ने भी गुप्त व वलभी नाम के दो संवत् माने परन्तु इस संदर्भ में हुयी खोजों के आधार पर अब विद्वान गुप्त व वलभी संवत् को एक ही मानते हैं । ओझा का मत है : अल्बेरूनी ने वलभी संवत् को वलभीपुर के राजा वलभ का चलाया हुआ माना है और उक्त राजा को गुप्तवंश का अन्तिम राजा बतलाया है, परन्तु ये दोनों कथन ठीक नहीं हैं क्योंकि उक्त संवत् के साथ जुड़ा हुआ वलभी नाम उक्त नगर का सूचक है न कि वहां के राजा का, और न गुप्त वश का अन्तिम राजा बलभ था। सम्भव है कि गुप्त संवत् के प्रारम्भ से ७०० से अधिक वर्ष पीछे के लेखक अल्बेरूनी को वलभी संवत् कहलाने का ठीकठीक हाल मालूम न होने के कारण उसने ऐसा लिख दिया हो अथवा उसको लोगों ने ऐसा ही कहा हो।' सी० मोबेल डफ ने भी गुप्त व वलभी संवत् एक ही थे, इसी मत का समर्थन किया है। गुप्त संवत के संदर्भ में अभिलेखों व विभिन्न साक्ष्यों के विस्तृत विवेचन के बाद कुछ निष्कर्ष इस प्रकार दिये जा सकते हैं : (१) गुप्त संवत् के वर्ष का आरम्भ चैत्र से होता है । (२) गुप्त तथा वलभी संवत् एक ही हैं । (३) वलभी या गुप्त संवत् शक संवत् से २४१ वर्ष बाद आरम्भ होता है । (४) गुप्त संवत् का विस्तार क्षेत्र उत्तरी भारत ही रहा। दक्षिण में इसका प्रचलन नहीं हुआ। (५) गप्त संवत् के प्रचलन का समय गुप्त नरेशों का शासन काल रहा। इसके कुछ समय पश्चात् यह लुप्त हो गया। १. अल्बेरूनी, "अल्बेरूनी का भारत", अनु० रजनीकांत, इलाहाबाद, १६६७, पृ० २६७। २. एलग्जेण्डर कनिंघम, "ए बुक ऑफ इण्डियन एराज", वाराणसी, १६७६, प० ५७ । ३. राय बहादुर पण्डित गौर शंकरी हीरा चन्द ओझा, "भारतीय प्राचीन लिपि माला", अजमेर, १९१८,१० १७५ । ४. सी० मोबेल डफ, "क्रोनोलॉजी ऑफ इण्डिया", भाग-१, वाराणसी, १९७५, पृ० २७।
SR No.023417
Book TitleBharatiya Samvato Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAparna Sharma
PublisherS S Publishers
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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