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________________ १८ भारतीय संवतों का इतिहास तथा राजकीय कार्यों के लिये भी किया गया और हिन्दुओं के धार्मिक कार्यों के लिये अपने जन्म से आज तक निरन्तर प्रयुक्त हो रहा है । विक्रम सम्वत् का उल्लेख केवल श्री सम्वत् नाम से भी किया जाता है । सम्पूर्ण उत्तरी भारत में पंचांग निर्माण, व्रत, त्योहार के निर्धारण तथा विवाह आदि शुभ अवसरों की तिथियां निश्चित करने के लिये विक्रम सम्वत् का प्रयोग किया जाता है । "वर्तमान समय में इसकी दो प्रकार की गणना चैत्रादि व कार्तिकादि प्रचलित हैं। चैत्रादि गणना में वर्ष का आरम्भ २० चैत्र से होता है । जिसका प्रचलन उत्तरी भारत में है तथा कातिकादि गणना में वर्ष आरम्भ १२ कार्तिक से होता है जिसका प्रचलन दक्षिणी भारत में है। विक्रम सम्वत् २०४३ का आरम्भ चैत्र २० (१० अप्रैल १९८६ ईस्वी) कार्तिक १२ (३ नवम्बर १९८६ ईस्वी)" नये वर्ष का आरम्भ नवरात्रि प्रथम से होता है जोकि चैत्र के १५ दिन बीतने पर चैत्र माह के मध्य में पड़ता है। फिर यहां इस पंचांग में चैत्र २० व कार्तिक १२ से नव वर्ष आरम्भ किस आशय से लिखा है, समझ नहीं पड़ता । कार्तिकादि नव वर्ष का आरम्भ भी कार्तिक प्रथम से ही होना चाहिये न कि कार्तिक १२ से । विक्रम सम्वत् चन्द्र मास आधारित होने पर भी इसमें सौर मासों का समावेश रहता है। अधिकांश पर्व व त्योहार चन्द्र मासों पर ही आधारित होते हैं। हमारी संस्कृति और सभ्यता विभिन्न तीज त्योहारों, पर्वो एवं उत्सवों के रूप में अभिव्यक्त होती है। इस विभिन्नता में भी विक्रमी सम्वत् के रूप में एकता की भावना सर्वत्र लक्षित होती हैं। विक्रम सम्वत् के माह पूर्णरूपेण चन्द्रीय हैं तथा प्रथम माह चैत्र है। पूर्णचन्द्र के बाद से नया माह आरम्भ होता है। दो शहस्त्राब्दियों से भारत में प्रचलित शताब्दियों तक प्रशासनिक, धार्मिक व सामाजिक कार्यों में प्रयुक्त विक्रम सम्वत् देश के एक बड़े भू-भाग में लोकप्रिय रहा । साहित्य, अभिलेखों, मुद्राअंकन व प्रशस्तियों में सम्बत् ने स्थान पाया। इतनी सब विशिष्टतामों के होते हुये भी प्रश्न यह उठता है कि क्या विक्रम की ये विशिष्टताएं उसको भारत का राष्ट्रीय सम्वत् कहलाने के लिये पर्याप्त हैं। इसके लिये राष्ट्रीय सम्वत् के गुणों को देखना अनिवार्य है । "जो सम्वत् सम्पूर्ण देश में प्रयुक्त हों, राष्ट्रीय भावनाएं जिसके साथ जुड़ी हों तथा जो इतिहास का १. राष्ट्रीय पंचांग, दिल्ली, १९८६-८७, भूमिका ४ । २. विक्रम सम्बत् आजकल भी प्रचलन में है अतः इसकी गणना प्रद्धति का विस्तृत विवरण चतुर्थ अध्याय "विभिन्न सम्वतों का पारस्परिक सम्बन्ध व वर्तमान अवस्था" में दिया गया है।
SR No.023417
Book TitleBharatiya Samvato Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAparna Sharma
PublisherS S Publishers
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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