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(३००) अन्ने ते दहि लोग अन्नु तं भुअ-जुअलु । ...... अन्नु सु घण थण हारु तं अन्नु जि मुह-कमलु ॥ अन्नु जि केस कलावु सु अन्नु जि प्राउ विहि । जेण णिअम्बिणि थडिअ स गुणालायण्ण-णिहि ॥ प्राइव मुणिहंवि भन्तडी ते मणिअडा गणन्ति । अखइ निरामइ परम-पइ अजवि लउ न लहन्ति । अंसु-जलें प्राइम्ब गोरिअहे सहि उव्वत्ता नयण-सर । तें सम्मुह संप्रेसिधा देन्ति तिरिच्छी घच पर ॥ एसी पिउः रूसेसु हउं रुी मई अणूणेइ। पग्गिम्ब एइ मणोरहई दुक्करु दइउ करेइ ॥
॥ ४१.५ ॥ वान्यथोनुः ।। ... अपभ्रंशे अन्यथाशब्दस्य अनु इत्यादेशो वा भवति ॥ सभा अन्यथा शम्ने अनु मे। आदेश विधे याय छे.
विरहानल-जाल करालिअउ पहिउ कोवि बुडिवि ठिअओ ।
अनु सिसिर कालि सीअल-जलहु धूसु कहन्तिहु उदिळाओ ॥ पक्षे । अन्नह ॥
॥ ४१६ ॥ कुतसः कउ कद्दन्तिहु ॥ . अपभ्रंशे कुतस्शब्दस्य कउ कहन्तिहु इत्यादेशौ भवतः ॥
अ मi कुतत् शने का मन कहन्तिहु मे माहेa पाय छे.