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( २३६ ) जिम । जिम्मइ || लग् । लग्गइ ॥ मग् । मग्गइ || नस्सइ || अट् । परिअदृद्द || लुड् | पलोहइ || नइ || सिव् । सिव्वह । इत्यादि ॥
॥ २३१ ॥ स्फुटि चलेः ॥
अनयोरन्त्यस्य द्वित्वं वा भवति ॥
फुडइ
कुप् । कुप्पइ ॥ नश् तुद् | तुदृइ ॥ नट् ।
स्फुट् भने चल् धातुना अन्त्य वर्गुनो द्वित्व विउये थाय छे. कुड्छ । चल्लह चलइ ॥
।। २३२ ॥ प्रादेर्मीलेः ॥
प्रादेः परस्य मीलेरन्त्यस्य द्वित्वं वा भवति ॥
ત્ર વિગેરે ઉપસર્ગથી પામીજી ધાતુના તે ક્રિત્વ વિકલ્પે થાય છે. पमिलइ पमीलs | निमिल्लs निमीलइ । संमिलइ संमीलइ उम्मीe || प्रादेरिति किम् । मीलइ ॥
। उम्मिलह
॥ २३३ ॥ उवर्णस्यावः ॥ धातोरन्त्यस्योवर्णस्य अवादेशो भवति ।।
धातुना व्यन्त्य उ वर्णुने अव आहेश थाय छे हु । निहवइ ॥ च्युङ् । चवइ ॥ रु | रवइ ॥ कु ।
पसव ॥
हु । निण्हवह ॥
कवह ॥ सू । सवद्द |
॥ २३४ ॥ ऋवर्णस्यारः ॥
धातोरन्त्यस्य ऋवर्णस्य अरादेशो भवति ॥
धातुना अन्त्य वर्णने भर महेश थाय छे. करइ | धरद्द | मरइ |