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मेह, विषामने पश्चात्तापना अर्थभां अवो शब्द उभ्याशय छे. सूघमायाम् । अब्बो दुक्करयारय ॥ दुःखे । अन्वो दलन्ति हिययं ॥ संभाषणे । अवो किमि किमि || अपराधविस्मययोः ।
roat हरन्ति हिअयं तहदि न वेसा हवन्ति जुवईण | अन्वो किंपि रहस मुणन्ति चुत्ता जणकभहिमा || आनन्दादरभयेषु ।
अन्वो सुपहायमिणं अध्वो अजभ्ह सप्फलं जीअं । rai अस्मि तुमे नवरं जइ सा न जूरिहि || खेदे । अवो न जामि छेत्तं ॥ विषादे ।
roat नासेन्ति दिहिं पुलयं वन्ति देन्ति रणरणयं । एहि तस्सेअ गुणा तेचि अवो कह णु एअं ॥
पश्चात्तापे ।
roat तह तेण कया अहयं जह कस्स साहेमि || ॥ २०५ ॥ अइ संभावने ||
संभावने अइ इति प्रयोक्तव्यम् ॥
संभावना अर्थभां अइ शब्द उभ्या राय छे. अइ दिअर किं न पेच्छसि ॥ ॥ २०६ ॥ वणे निश्चय - विकल्पानुकम्प्ये च ॥ घणे इति निश्चयादौ संभावने च प्रयोक्तव्यम्
निश्चय, विह्य, अनुम्भ्भ्य ( हया सावत्रा योग्य) अर्थमां ने संभा चुना अर्थभां वणे शु६ उभ्या राय छे. वणे देमि । निश्चयं ददामि ॥