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________________ ६६ प्राकृत व्याकरण जैसे :- जज्जो, सेज्जा ( जय्यः, शय्या ) र्घ्य का ज जैसे :भज्जा, कज्जं, वज्जं, पज्जाओ, पज्जन्तं ( भार्य्या, कार्य्यम् वर्यम्, पर्यायः, पर्यन्तम् ) " विशेष – (क) शौरसेनी में र्थ्य के स्थान में राय भी होता है | (ख) पैशाची में र्घ्य के स्थान में कहीं रिय आदेश होता है | ( २४ ) ध्य के स्थान में झ एवं न और ज्ञ के स्थान आदेश होते हैं । ध्य का झ जैसे :- झाणं, उवज्झाओ, सज्माओ, मज्यं, विंज्को, अज्झाओ ( ध्यानम्, उपाध्यायः, साध्यायः या स्वाध्यायः, मध्यम्, विन्ध्यः, अध्यायः ) न का ण जैसे :- निण्णं, पज्जुण्णो, (निम्नम्, प्रद्युम्न्नः ) ज्ञ का ण जैसे :- णाणं, संणा, पण्णा, विष्णाणं ( ज्ञानम्, संज्ञा, प्रज्ञा, विज्ञानम् ) ( २५ ) समस्त और स्तम्ब के स्त को छोड़कर अन्य स्त के स्थान में थ आदेश होता है । जैसे:- हत्थो, थोतं, थोअं, पत्थरो, थुई ( हस्तः, स्तोत्रम्, स्तोकम्, प्रस्तरः, स्तुति:) विशेष- (क) मागधी में स्त और र्थ के स्थान में स्त ही होता है । - (ख) समस्त शब्द का रूप समत्तं और स्तम्ब शब्द का तंबो होता है । ( २६ ) संयुक्त न्म के स्थान में म आदेश होता है । जैसे:- जम्मो, मम्महो ( जन्म, मन्मथ : )
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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