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________________ द्वितीय अध्याय ५३ (ग) आदि में रहने के कारण पढइ ( पठति) के पका व नहीं हुआ । (घ) प्रायः कहने से रिऊ ( रिपुः ) में व नहीं हुआ । (१०) एयन्त पट धातु में प के स्थान में फ आदेश होता है । जैसे :- फालेइ, फाडेइ ( पाटयति ) ( ११ ) स्वर से पर में रहनेवाले संयुक्त और अनादि फ के स्थान में कहीं भी, कहीं ह और कहीं दोनों (भ और ह ) होते हैं । भ जैसे:—— रेभो ( रेफः ); सिभा ( शिफा ), फ का ह जैसेः मुत्ताहलं (मुक्ताफलम् ); दोनों जैसे:— सेभालिया, सेहालिया (शेफालिका ); सभरी, सहरी ( शफरी ) विशेष – (क) स्वर से पर में नहीं रहने के कारण गुम्फइ ( गुम्फति ) में उक्त नियम नहीं लगा । (ख) संयुक्त होने के कारण पुष्कं (पुष्पम् ) में नियम लागू नहीं हुआ । (ग) आदि में होने के कारण फणी के फ को उक्त आदेश नहीं हुए । (१२) स्वर से पर में रहनेवाले, असंयुक्त और अनादि ब का व आदेश होता है । जैसे:- अलावू, अलाऊ ( अलाबू ); सवलो (शबलः ) (१३) विसिनी शब्द के व के स्थान में भ आदेश होता है । जैसे :- भिसिणी ( विसिनी ) 1
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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