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________________ १२ प्राकृत व्याकरण न का (८) स्वर से पर में रहनेवाले असंयुक्त और अनादि आदेश होता है। किन्तु आदि में वर्तमान असंयुक्त न का विकल्प से होता है । स्वर से पर अनादि और असंयुक्त न काण जैसे:- सणं ( शयनम् ); कणयं ( कनकम् ); वअणं (वचनम् ); माणुसो ( मानुषः ) | आदि में संयुक्त न का वैकल्पिक जैसे :- णरो, नरो ( नरः); गई, नई (नदी) विशेष – आदि में वर्तमान संयुक्त न का वैकल्पिक णत्व नहीं होता । जैसे:- न्यायः ( 2 ) स्वर से पर में रहनेवाले असंयुक्त और अनादि प के स्थान में प्रायः व आदेश हो जाता है । जैसे:- सवहो (शपथः) सावो (शापः ); उवसग्गो (उपसर्गः ); पईवो (प्रदीपः ); कासवो ( काश्यपः ); पावं ( पापम् ); उवमा (उपमा ); महिवालो (महीपालः); गोवेइ (गोपयति ); कलावो (कलापः ) ; तवइ (तपति); कवोलो ( कपोलः ) विशेष – (क) स्वर से पर में रहनेवाले कहने से कम्पइ ( कम्पते ) में व आदेश नहीं हुआ । (ख) संयुक्त कहने से अप्पमत्तो ( अप्रमत्तः ) में व आदेश नहीं हुआ । * प्राकृत प्रकाश २. ४. सर्वत्र ( श्रादि और अनादि में ) नका ण मानता है । ऊपर का नियम ८ हेमचन्द्र के अनुसार है । पैशाची 1 में णकार का नकार हो जाता है । + शौरसेनी में अपूर्व शब्द के स्थान में 'श्रवरूवं' और अउव्वं ये दो रूप होते हैं ।
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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