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________________ द्वितीय अध्याय (संयतः); विउदं (विवृतम् ); संजादो (संयातः); संपदि (संप्रति ); पडिवही (प्रतिपत्तिः)। विशेष-उक्त नियम प्राकृतप्रकाश (२.७.) के ऋत्वादिषु तो दः सूत्र के अनुसार बनाया गया है। किन्तु साधारण प्राकृत के लिए इस नियम को नहीं मानते। वे कहते हैं कि-'स तु शौरसेनीमागधी-विषय एव दृश्यत इति नोच्यते ।' अर्थात् यतः यह सूत्र शौरसेनी और मागधी भाषाओं में ही लागू होता है अतः हम इसका परित्याग करते हैं। . अतः साधारण प्राकृत में उक्त गण में तकार का दकार आदेश नहीं होता। रूप इस प्रकार के होंगे-उऊ (ऋतुः); रअअं (रजतम्); एअं ( एतम् ); गो (गतः); संपलं (साम्प्रतम्); जओ ( यतः); तो (ततः); कअं (कृतम्); हासो ( हताशः); ताओ ( तातः) (७) दंश और दह, प्रदोपि और दीप धातुओं के दकार के स्थान में क्रमशः ड, ल और वैकल्पिक ध आदेश होते हैं। जैसे:प्राकृत संस्कृत डसइ (द=ड).. दशति डहइ ड) , दहति पलीबेइ (दल) प्रदीपयति पलित्तं ... (दल) प्रदीप्तम् धिप्पइ, दिप्पइ (वैकल्पिक ध) दीप्यति , Ꭸ
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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