SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राकृत व्याकरण (ङ) ड का ल आदेश प्रायिक है, अतः आगेवाले शब्दों में विकल्प से ल होता है । वलिसं, वडिसं, दालिम, दाडिमं; गुलो, गुडो; णाली, नाडी; णलं, णडं । प्राकृत-प्रकाशकार दाडिम, वडिस, निविड में ल आदेश नहीं मानते हैं। कल्पलतिका के मत से केवल पीडित और गुड में वैकल्पिक लत्व होता है । वस्तुतः निविडं, पीडिअं और णीडं में ल का अभाव ही उचित है। . (५) 'प्रति' उपसर्ग में तकार के स्थान में प्रायः डकार आदेश होता है। जैसे :-पडिवएणं (प्रतिपन्नम् ); पडिसरो (प्रतिसरः); पडिमा (प्रतिमा) विशेष-'प्रायः' कहने से आगे के उदाहरणों में डकार विधान वाला नियम नहीं लागू हुआ ! पइवं (प्रतीपम् ); संपई (संप्रति ); पइट्ठाणं (प्रति ष्ठानम् ); पइट्ठा (प्रतिष्ठा ); पइण्णा (प्रतिज्ञा) - (६) ऋत्वादि गण के शब्दों में तकार का दकार होता है। जैसे :-उदू ( ऋतुः); रअदं ( रजतम्); आअदो (आगतः); णिव्वुदी (निवृतिः); आउदी (आवृतिः); संवुदी (संवृतिः); सुइदी (सुकृतिः); आइदी (आकृतिः); हदो (हतः); संजदो ... * ऋत्वादिगण के शब्द इस प्रकार उल्लिखित हैं :- ऋतुः किरातो रजतञ्च तातः सुसंङ्गतं संयतसाम्प्रतञ्च . सुसंस्कृतिप्रीतिसमानशब्दास्तथाकृतिनिवृतितुल्यमेतत् । उपसर्गसमायुक्त कृतिवृती वृतागती। __ऋत्वादिगणने नेया अन्ये शिष्टानुसारतः॥
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy