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________________ नवम अध्याय - १६७ स्थान में द्विरुक्त ञ होता है । न्य का जैसे :-अहिम - कुमाले, ( अभिमन्युकुमारः ) कञकावलणं ( कन्यकावरणम् ); ण्य का जैसे :-अबम्हनं ( अब्रह्मण्यम् ), पुत्राहं (पुण्याहम् ); ज्ञ का जैसे :-पाविशाले (प्रज्ञाविशाल:) शव्वये ( सर्वज्ञः ), अवज्ञा ( अवज्ञा ); ञ्ज का जैसे :-असली ( अञ्जलिः ), धणजए (धनञ्जयः ), पबले ( पञ्जरः)। (६) मागधी में व्रज धातु के जकार का ठञ आदेश होता है । जैसे :-कबदि (व्रजति )। विशेष-उक्त नियम इसी अध्याय के सातवें नियम का अपवाद है । अन्यथा य आदेश हो जाता है। (१०) मागधी में अनादि में वर्तमान छ के स्थान में शकार से संयुक्त चकार । श्च) होता है। जैसे :-गश्च, गश्च ( गच्छ, गच्छ ), उश्चलदि ( उच्छलति), पिश्चिले (पिच्छिलः), तिरिश्चि पेस्कदि' (तिरिच्छि पेच्छइ तिर्यक् प्रेक्षते)। (११ } मागधी में अनादि में वर्तमान क्ष के स्थान में जिह्वामूलीय क' आदेश होता है। जैसे :-य के ( यक्षः ), ल-कशे ( रक्षसे । (१२) मागधी में प्रेक्ष और आचक्ष के क्ष के स्थान में स्क आदेश होता है। जैसे:-पेस्कदि (प्रेक्षते), आचस्कदि (आचक्षते)। विशेष—पूर्व नियम (ग्यारहवें) का यह नियम अपवाद है। १. देखो-अगला नियम (१२)। २. प्राकृत प्रकाश के अनुसार स्क आदेश होकर यस्के और लस्कशे रूप होते हैं । दे०-वर० ११. ८.
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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