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________________ १८८ प्राकृत व्याकरण (३८) शौरसेनी में स्त्री शब्द के स्थान में 'इत्थी' आदेश होता है । जैसे : - इत्थी (स्त्री) । ( ३६ ) शौरसेनी में इव के स्थान में विअ आदेश होता है । जैसे :–विअ | (४०) जस् सहित अस्मद् के स्थान में वअं और अम्हे ये दोनों रूप शौरसेनी में होते हैं। जैसे :- अं और अम्हे ( वयम् ) " ( ४१ ) शौरसेनी में सर्वनाम शब्दों से पर में आनेवाली ( सप्तमी - एकवचन की ) ङि विभक्ति के स्थान में सित्वा आदेश होता है । जैसे :- सब्वसित्वा, इदर सित्वा (सर्वस्मिन् इतरस्मिन्) । ( ४२ ) शौरसेनी से भावकर्म और कर्ता अर्थों में धातु से परस्मैपद के ही प्रत्यय होते हैं । भाव जैसे :- किं दाणिं दासीपुत्ता ? दुभिवरुढरङ्क विभ उद्धकं सासाअसि एसा सा सेति । कर्ता में जैसे :- अज्ज वन्दामि । कर्म में जैसे :- दोजेव कामी अदि । (४३) आश्चर्य शब्द का अच्चरिअ रूप शौरसेनी में होता है । जैसे :- अहह, अञ्चरित्र अञ्चरिअं । (४४) शेष शब्दों के साधन प्राकृत अथवा महाराष्ट्री के अनुसार किये जाते हैं । प्राकृतसर्वस्त्र के अनुसार शौरसेनी के शब्द : शौरसेनी अउव्वं अगिम्मि अङ्गारो अहिमण्णू अव्वह्मणं अव्वह्मजं (अं) संस्कृत अपूर्वम् अग्नौ अङ्गारः अभिमन्युः अब्रह्मण्यम् विशेष निर्देश्य इत् का अभाव अ का अभाव
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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