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________________ ११४ प्राकृत व्याकरण आदर में जैसे :-अव्वो सो एइ ( मेरा प्रियतम यह आ रहा है ? ); भय में जैसे :-रूसणो अन्यो ( भय है कि वह थोड़े अपराध पर भी रूठ जानेवाला है । ); खेद और विषाद में जैसे:-अव्वो कहूं ( मैं खिन्न और विषण्ण हूँ।); पाश्चात्ताप में जैसे :-अव्वो किं एसो सहि मए वरिओ ( सखि, मैं तो पछता रही हूँ कि मैंने इसे बरा क्यों ?) (३० संभावन अर्थ में 'अई' अव्यय का प्रयोग करना चाहिये । जैसे :-अइ एसि रइ-घराओ ( मेरी ऐसी संभावना है कि तुम रतिगृह से आ रही हो । __(३१) निश्चय, विकल्प, अनुकम्प्य और संभावन अर्थों में “वणे' अव्यय का प्रयोग करना चाहिये । निश्चय में जैसे :वणे देमि ( निश्चय ही देता हूँ ); विकल्प में जैसे :-होइ वणे न होइ ( हो या न हो ); अनुकम्प्य में जैसे :-दासो वणे न मुच्चइ (अनुकम्पा योग्य दास छोड़ा नहीं जाता); संभावन में जैसे :-नत्थि वणे जं न देइ विहिपरिणामो । (३२ ) विमर्श अर्थ में (कुछ के मत से संस्कृत मन्ये अर्थ में) मणे अव्यय का प्रयोग किया जाता है। जैसे :-मणे सूरो (मेरी ऐसी मान्यता है कि यह सूर्य है।) __ (३३) आश्चर्य अर्थ में अम्मो अव्यय का प्रयोग करना चाहिए | जैसे:-स अम्मो पत्तो खु अप्पणो ( वह प्रियतम अपने आप प्राप्त हो गया । आश्चर्य है ?) : (३४) स्वयम् के अर्थ में अप्पणो का प्रयोग विकल्प से
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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