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________________ पश्चम अध्याय मडह-सरिआ, रतिकलह में अरे जैसे :- अरे मए समं मा करेसु उवहासं। " ___ २७ ) क्षेप, संभाषण और रतिकलह अर्थों में 'हरे' इस अव्यय का प्रयोग करना चाहिए । क्षेप में जैसे :-हरे णिलज, संभाषण में जैसे :-हरे पुरिसा, रतिकलह में जैसे :-हरे वहुवल्लह । (२८) सूचना और पश्चात्ताप अर्थों में 'ओ' अव्यय का प्रयोग करना चाहिए । सूचना अर्थ में जैसे :-ओ सढो सि ( मैं यह सूचित कर देना चाहता हूँ कि तुम शठ हो।) पश्चात्ताप में जैसे :-ओ किमसि दिट्ठो ? (क्या तुम देख लिए गये ? ) कुमा. पा. ४. १३. (२६ ) सूचना, दुःख, संभाषण, अपराध, विस्मय, आनन्द, आदर, भय, खेद, विषाद, और पश्चात्ताप अर्थों में 'अव्वो' इस अव्यय का प्रयोग करना चाहिए। सूचना में जैसे :-अव्वो नओ तुह पियो ( यह सूचित करता हूँ कि तुम्हारा प्रियतम नत हो गया।); दुःख में जैसे :-अव्वो तम्मेसि ( खेद है कि तुम उदास हो । ); संभाषण में जैसे :-किं एसो अव्वो अन्नासत्तो ( क्या यह दूसरी में आसक्त है ?); अपराध एवं विस्मय में जैसे :-अव्वो तुज्झेरिसो माणो ( प्रणययुक्त प्रणयी में तुम्हारा ऐसा मान ? ) इससे अपराध और आश्चर्य दोनों प्रकट होते हैं । आनन्द में जैसे :-अव्वो पिअस्स समओ ( यह आनन्द की बात है कि प्रियतम के आने का यह समय है।);
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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