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________________ पञ्चम अध्याय ११५ करना चाहिए । देखिए ऊपर के ३३ वें नियम का उदाहरण | पक्ष में 'सयं' होता है। (३५) प्रत्येकम् के अर्थ में पाडिकं, पाडिएकं और पक्ष में पत्तेअं का प्रयोग करना चाहिए | जैसे-पाडिकं दइआओ, वाण वयंसीओ पाडिएकं च । पत्तेअं मित्ताइं (प्रत्येक दयिताएं, उनकी प्रत्येक सखियाँ और प्रत्येक मित्र ) (३६ ) पश्य के अर्थ में 'उअ' का प्रयोग विकल्प से किया जाता है। जैसे :-उअ एसो एइ ( देखो, यह आ रहा है।) ( ३७ ) इतरथा के अर्थ में इहरा का प्रयोग विकल्प से किया जाता है। जैसे :-कहमिहरा पुलइआ सि दठुमिमं (अन्यथा इसे देखकर तुम पुलकित क्यों हो ?) (३८) झगिति और साम्प्रतम् के अर्थ में एक्कसरिअं का प्रयोग होता है । जैसे :-एक्कसरि झगिति साम्प्रतम् वा | (३६) मुधा के अर्थ में मोरउल्ला का प्रयोग किया जाता है । जैसे :-मा तम्म मोरउल्ला ? (व्यर्थ उदास मत होओ ? ) (४०) अर्द्ध और ईषत् में 'दर' इस अव्यय का प्रयोग किया जाता है। जैसे :-दरविअसिअं (अर्ध विकसित अथवा ईषद्विकसित) (४१) प्रश्न अर्थ में किणो अव्यय का प्रयोग करना चाहिए ! जैसे :-किणो धुवसि ? ( काँपते हो क्या ?) ___(४२) पादपूर्ति के लिए इ, जे, र का प्रयोग करना चाहिए । जैसे :-वारविलया इ एआ, गिम्ह-सुहं माणिउं पयट्टा जे; पिअन्ति पिक्क दक्ख-रसं।
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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