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पृथक् व्यापार करों । संध्या के समय घर लौट आना, तथा व्यापार से जो आमदनी हो, उसी से सबं को भोजन कराना।"
पिता की दी हुई स्वर्णमुद्रा लेकर धन्ना बाजार में आया। वह एक दुकान के सामने खडी हो गया। दूकान का सेठ पत्र पढ़ रहा था। उस पत्र के उलटे अक्षर दूसरी तरफ से दिखाई देते थे। धन्ना ने पत्र की पीठ की ओर से उन उलटे-अक्षरों को पढ़ा। पत्र में लिखा था, कि" अभी बंजारे की बालद ( काफिला ) आती है। उसमें बहुत-महँगा किराना है, इसलिये जल्दी से जाकर वह किराना खरीद लेना । ऐसा करने से बहुत लाभ होगा।"
उलटे-अक्षरों को पढ़ने से धन्ना को पत्र का हाल मालूम होगया । उसने सोचा-चलो, अपना तो बेड़ा पार है ! वह नगर के बाहर आया और बंजारे से मिलकर सौदा तय कर लिया। उसी समय वह सेठ भी आगया। सेठ ने बंजारे से कहा-"अरे भाई बंजारे! क्या किराना बेंचोगे?" सेठ की बात के उत्तर में बंजाराबोला-"सेठ जी! किराने का सौदा तो हो चुका और खरीदने वाले ये खड़े हैं"।
बंजारे का उत्तर सुनकर सेठ आश्चर्य में हुआ और कहने लगा, कि-"यह मेरा दोस्त किराना खरीदने के.