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तो धन्ना की बड़ाई सीमा से भी अधिक करते है । जब देखो, तब धन्ना की प्रशंसा की ही बात । वे यही कहा करते हैं, कि मेरा धन्ना ऐसा है और मेरा धन्ना वैसा है ! समझ में नहीं आता, कि छोटा-सा बालक धन्ना ऐसा क्या करता है, जिसके कारण पिताजी उसकी इतनी बढ़ाई करते हैं ! धन्ना केवल खाता-पीता तथा चलता फिरता है, तब भी उसकी इतनी बड़ाई करते हैं और हम तीनों भाई व्यापार करके धन कमाते हैं, फिर भी पिताजी हमारी बड़ाई क्यों नहीं करते ?"
होते-होते धनसार सेठ को मालूम हुआ, कि मेरे तीनों लड़के अपने छोटे-भाई धन्ना से ईर्ष्या करते हैं । स्वयं तो बुद्धिमान तथा विचारशील हैं नहीं, और दूसरे की बुद्धिमानी तथा विचारशीलता इनसे देखी नहीं जाती । यही कारण है, कि ये लोग धन्ना से ईर्ष्या करते हैं। इसलिये यह उचित होगा, कि चारों लड़कों की परीक्षा लेकर धन्ना की बुद्धि से इन तीन इर्ष्यालु लड़कों को परिचित किया जावे। ऐसा किये बिना ये तीनों ईर्ष्या न छोड़ेंगे ।
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इस प्रकार विचार सेठ ने अपने चारों लड़कों को बुलाकर कहा, कि – “ये स्वर्णमुद्रा लो और इससे पृथक