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प्रभु महावीर
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कुल १४००० साधु तथा ३६००० साध्वियों ने भगवान महावीर के हाथ से दीक्षा पाई थी । इनके अतिरिक्त गृहस्थ स्त्री - पुरुष भी बहुत थे 1
भगवान - महावीर ने इन सब को मिलाकर एक संघ स्थापित किया । एसा संघ तीर्थ कहा जाता है । यही कारण है, कि वे तीर्थङ्कर कहलाये । इनके बाद, फिर कोई तीर्थङ्कर नहीं हुए । इसीलिये ये अन्तिम - तीर्थङ्कर कहे जाते हैं । उन्होंने अपने राग-द्वेष को पूरी तरह जीत लिया था, इसलिये वे 'जिन' भी कहे जाते हैं । और उनका अनुकरण करनेवालों को 'जिन' शब्द के सम्बन्ध से जैन कहते हैं ।
पतित मानव-समाज के सामने, आदर्श-जीवन व्यतीत करनेवालों का यह संघ स्थापित कर, भगवान ने संसार के सुधार की घोषणा की। अनेक भ्रम तथा बहुत-सी कुरीतियों की जड़ उखड़ गई। लोग, अहिंसा का रहस्य समझने लगे । संसार को ज्ञान और सच्चे - त्याग का भारतवर्ष में फिर एक प्रकाश दिखाई दिया ।
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विहार करते-करते प्रभु - महावीर पावापुरी गये । वहाँ बहुत से राजालोग इकट्ठे हो रहे थे । उन्हें भगवान ने अपनी अमृत-वाणी से उपदेश दिया । यह अन्तिम - धर्मोपदेश देकर, प्रभु - महावीर निर्वाण को प्राप्त हुए । अहा ! भारतवर्ष का