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प्रभु - महावीर
प्रत्येक मनुष्य को धर्म करने का अधिकार है, फिर वह चाहे ब्राह्मण हो या चाण्डाल, स्त्री हो या पुरुष । परम-धर्म है |
अहिंसा ही
जिसकी आत्मा का पूरा विकास होजाता है, वही परमामा बन जाता है ।
वस्तु की प्रत्येक दिशा पर विचार करने से ही उसका सच्चा-स्वरूप समझा जासकता है—– इत्यादि । "
प्रभु महावीर, लोगों की प्रचलित भाषा में ही अपना 'उपदेश देने लगे । तीस वर्ष तक उन्होंने देश के भिन्न भागों में भ्रमण करके अपना उपदेश दिया । चारों वर्ण के स्त्रीपुरुष उनके शिष्य हुए । इन्द्रभूति गौतम, सुधर्मा आदि ब्राह्मण मेघकुमार आदि क्षत्रिय; धन्ना, शालिभद्र आदि वैश्य; मेतारज, हरिकेशी वगैरा शुद्र, भगवान के त्यागी - शिष्य थे !
वैशालीपति चेड़ा महाराज, राजगृहपति श्रेणिक और उनके पुत्र कोणिक आदि क्षत्रिय आनन्द तथा कामदेव ब्यौपार एवं खेती करनेवाले वैश्य; शकडाल तथा ढंक आदि कुमहार; प्रभु के खास गृहस्थ - शिष्य थे ।
त्यागी स्त्री-शिष्याओं में, चन्दनबाला तथा प्रियदर्शना क्षत्रिय - कन्याएँ थीं; देवनन्दा ब्राह्मणी थीं । गृहस्थ स्त्रीशिष्याओं में रेवती, सुलसा, जयन्ती आदि विदुषीबहनें थीं ।