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________________ ૨૪ प्रभु महावीर सूर्य अस्त हो गया, भक्तों ने उनकी कमी पूरी करने के लिये लाखों दिये जलाये, जिनसे दिवाली का त्यौहार शुरू हुआ। जिस महापुरुष ने अद्वितीय - जीवन विताकर अपनी आत्मा तथा जगत का कल्याण किया, उसके गुणों का वर्णन कौन कर सकता है ? जबतक संसार का अस्तित्व है, तवतक वह इस उपकार को याद रखेगा और उनके उपदेश का अनुसरण कर, अपना कल्याण साधेगा । अगणित वन्दन हीं प्रभु - महावीर को ! अगणित प्रणाम उस मानवजाति के उद्धारक को ! प्रभु महावीरकी निर्वाणभूमि - जलमंदिर पावापुरी का अत्यंत मनोहर त्रिरंगी चित्र । मू. २ आना त्रिशला माताको आये हुए चौदह स्वप्न भाववाही त्रिरंगी चित्र । भू. २ आना २५ नकल रु. २ || ज्योति कार्यालय
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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