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प्रभु-महावीर भिक्षा ग्रहण की। वहाँ दो भाई रहते थे, वे बड़े ही चतुर थे। उन्होंने पहचाना, कि इन सन्त के शरीर में कोई पीड़ा है। किन्तु सन्त तो भिक्षा ग्रहण करके ग्राम से बाहर आ, ध्यान में मग्न होगये।
उन दोनों भाइयों से, श्री वर्द्धमान का दुःख न देखा गया और वे दवा लेकर श्री बर्द्धमान के पीछे-पीछे वहीं आथे । वहाँ आकर उन्होंने चतुरतापूर्वक कान में से सलाइयें खींच ली । इस समय अत्यधिक-पीड़ा के कारण, श्री वमान के मुख से एक आह निकल पड़ी। थोड़ी देर के बाद वे शान्त होगये और फिर ध्यान करने लगे। ____ अहा ! कैसी वीरता ! ऐसी वीरता न कभी देखी, और न सुनी । ऐसी वीरता के कारण ही, श्री वर्धमान महावीर कहलाये।
प्रभु-महावीर, एक अनाज के खेत में, शालिवृक्ष के नीचे ध्यान में मग्न बैठे थे, पास ही एक नदी बहती थी। दिन का चौथा पहर था और उन्हें छठ्ठका तप था।
ऐसे समय में उन्हें केवलज्ञान हुआ, अर्थात् सब बातें वे ठीक-ठीक रूप में जानने लगे। उन्हें सच्चे सुख का मार्ग मिल गया।