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प्रभु-महावीर मग्न थे, अतः उन्होंने कोई उत्तर न दिया । ग्वाला गांव की तरफ चल दिया और पीछे से बैल भी जंगल में चले गये ।
ग्वाले ने वापस लौटकर देखा, तो उसे वहां बैल न दिखाई दिये । वह बोला-" अरे साधु महाराज ! मैरे बैल कहां हैं ?"। किन्तु श्री वर्द्धमान ने कोई उत्तर न दिया । ग्वाले को बड़ा क्रोध आया, उसने फिर से पूछा--" अरे महाराज ! मेरे बैल कहां गये ? " । किन्तु फिर भी कोई उत्तर न मिला, अतः ग्वाले को और भी ज्यादा क्रोध हो आया।
वह फिर बोला--" क्यों बे साधु ! सुनता नहीं है क्या ? क्या ये तेरे कान के छेद फिजूल हैं ? कुछ जवाब नहीं देता ? अच्छा, ला तब ये छेद बन्द ही क्यों न कर दूँ ?" यह कहकर वह नोकदार घास की सलाइयें ले आया और उन्हें घुसेड़कर कान के सूराख बन्द कर दिये । सलाइयों का जो भाग बाहर रह गया था, उसे उसने इसलिये काट डाला, कि कोई उन्हें खींचकर बाहर न निकाल दे।।
___ अहा ! इतने भारी संकट के पड़ने पर भी श्री वर्द्धमान के मुख से ' अरे' न निकला । कैसी क्षमा ? कितनी सहनशीलता !
ध्यान पूरा होने पर, श्री वर्द्धमान ने ग्राम में जाकर