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________________ १८ प्रभु - महावीर सच्चे - साधु श्री वर्धमान तो इस विपत्ति के समय भी अपने स्थान से हिले-डुले नहीं । किन्तु गोशाला से उस अग्नि की गर्मी न सही गई और वह चिल्लाकर बोला -" गुरुजी ! भागो, सर्वग्राही - अग्नि आपहुँची, अभी हमलोग जलकर भस्म होजावेंगे 1 | इतना कहकर गोशाला भाग खड़ा हुआ सच्चे - साधु श्री वर्द्धमान तो शान्तिपूर्वक अपने स्थान पर ही खड़े रहे । चाहे शरीर रहे या जल जाय, किन्तु लगाया हुआ ध्यान कैसे छोड़ा जा सकता था ? उनके दोनों पैर खूब झुलस गये । ध्यान पूरा होने पर श्री वर्द्धमान आगे चले । गोशाला उनसे फिर आ मिला और पीछे से एक विद्या साधने के लिये पृथक होगया । : १८ : एक बार श्री वर्धमान ध्यान में खड़े थे । उसी समय वहाँ एक ग्वाला आया, उसके साथ बैलों की जोड़ी थी । उस वाले को गाँव में जाकर वापस वहीं आना था । उसने सोचा- " थोड़ी देर के लिये इन बैलों को गांव में क्यों ले जाऊँ ? यहीं क्यों न छोड़ दूँ ? " फिर श्री वर्द्धमान से बोला- “ऐ भाई ! थोड़ी देर इन बैलों को देखते रहो, मैं गाँव से अभी वापस आता हूँ " । श्री वर्द्धमान तो ध्यान में
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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