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प्रभु-महाबीर
___ इस समय गोशाला उनके साथ न था। उसे मालूम था, कि राढ़ कैसा देश है और वहाँ साधुओं के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है । राढ-प्रदेश में से जब श्री बद्रमान लौट आये, तब गोशाला फिर आकर उनके साथ हो लिया।
: १७: एक बार श्री वर्द्धमान पूर्ण-ध्यान में खड़े थे । अँधेरी रात्रि और उसमें भी कडाके का पड़नेवाला जाडा, मानों उनकी परीक्षा कर रहा था । इसी समय व्यापारियों का एक काफला वहाँ आपहुँचा, जो व्यापार के लिये दूर-दूर के देशों में जाना चाहता था।
रात्रि का समय और सर्दी को अधिकता होने के कारण उन व्यापारियों ने तापने के लिये आग जलाई । उस आग से वे सबेरे तक तापते रहे और सबेरा होजाने पर आगे को चल दिये । व्यौपारी तो चले गये, किन्तु वह अग्नि ज्यों की त्यों सुलगती ही रही । पास ही बहुत-सा घास लगा था, जो अग्नि के कारण किसी तरह जलने लगा। उस अग्नि में जंगली-पदार्थों के जलने से बड़े जोर का धमाका होने लगा
और अग्नि प्रचण्ड-रुप धारण करती हुई बहुत बढ़ गई । अनि जलती-जलती श्री वर्द्धमान तथा गोशाला के सामने भी पहुंची।