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प्रभु - महावीर
थोड़ी देर के बाद सिपाहियों ने जाना, कि ये तो कोई महापुरुष हैं । वे सोचने लगे- “ अहो ! हमने बडा ही बुरा किया | बिना पहचाने एक महात्मा को दुःख दिया । अच्छा चलो, हमलोग उनसे माफी माँगें । "
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उन्होंने श्री वर्द्धमान से अपने पापों के लिये माफी माँगी किन्तु । श्री वर्द्धमान तो क्षमा के भण्डार थे, उन्हें सिपाहियों के बर्ताव से किंचित् भी क्रोध न था, जिससे माफी देने अथवा माफी माँगने की कोई आवश्यकता ही न रही थी ।
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एक बार, श्री वर्द्धमान चलते-चलते एक जंगली - मुल्क में पहुंचे, जिसका नाम राढ़ था । वहां के रहनेवाले मनुष्य भी जंगली ही थे । वे लोग साधु को देखते ही मारने दौड़ते और अपने कुत्तों को उन पर छोड़ देते । इस तरह वे अपने सभी असभ्य-उपाय आजमाते थे ।
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उन लोगों ने, अपनी रीति के अनुसार ही, श्री वर्द्धमान को भी खूब सताया। उन्हें रहने के लिये न तो मकान ही मिलता था और न भिक्षा ही मिलती थी । किन्तु उन्हें तो तप अत्यन्त-प्रिय था, अतः व तप और ध्यान किया करते थे । इस तरह कई मास उन्होंने उसी प्रदेश में भ्रमण करके बिता दिये ।