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प्रभु - महावीर
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उस वन में एक बड़ी-भारी बिल था, जिसमें एक काला - नाग रहता था । वह बहुत ज्यादा जहरीला था । उसकी फुफकारमात्र से मनुष्य अथवा पशु कोई भी हो, मर जाता था । उसका नाम था -चण्डकोशी ।
चण्डकोशी ने श्री वर्द्धमान को देखा । फिर तो पूछना ही क्या था ? उन्हें देखते ही वह फुफकारने लगा । किन्तु उसके बार - बार और जोर-जोर से फूँ-फूँ करने पर भी वर्द्धमान पर कोई असर न हुआ ।
अपना प्रयत्न असफल होते देख, चण्डकोशी अपने मन में सोचने लगा - "अरे, यह क्या ? यह तो कोई विचित्र - मनुष्य मालूम होता है ! इसके शरीर पर ज़हर का प्रभाव क्यों नहीं होता ? अच्छा, तो अब मैं
तक
नहीं
के
अँगूठे में काट
कि आखिर जहर का प्रभाव कब दौड़ा और श्री वर्धमान के दाहिने पैर खाया । किन्तु इसका भी उनके शरीर पर कोई प्रभाव न पड़ा, वे तो सच्चे - सन्त जो ठहरे !
काटकर देखता हूँ, होता ! " वह
अब साँप के ज़हर का क्या प्रभाव होसकता था ? अपने सारे प्रयत्न असफल होते देख, वह बेचारा बिलकुल ठण्डा पड़ गया । उसको शान्त होते देख, श्री वर्धमान बोले" चण्डकौशिक ! कुछ सोच-समझ, जरा अपने आत्मा का भी ध्यान रख " 1