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________________ प्रभु-महावीर श्री वर्द्धमान के सदृश महात्माओं के पवित्र-मुख से निकली हुई वाणी किसे लाभ नहीं करती ? उपरोक्त पवित्रशब्द कान में पड़ते ही, महान्-जहरी चण्डकोशी का विष नाश हो गया और वह आत्मकल्याण के मार्ग पर लग गया। श्री वर्द्धमान आगे की तरफ चले । श्री वर्धमान चलते-चलते राजगृह नामक एक बड़ेशहर में आये । उस नगर का एक भाग नालन्दा के नाम से प्रसिद्ध था । श्री वर्द्धमान नालन्दा में ही एक बुनकर की बुनकरशाला में उतरे। ___इस समय के बाद चातुर्मास प्रारम्भ होता था और चौमासे में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने का मुनियों का नियम नहीं है, अतः श्री वर्द्धमान वहीं रह गये। वहाँ गोशाला नामक एक चित्रकार का लड़का आया। वह बड़ा कुलक्षणी और ज़बरदस्त उपद्रवी था। लोगों को तसवीरें दिखला-दिखलाकर, वह अपना गुजर चलाता था। उसने सोचा-" चलो मैं इन सन्त का शिष्य होजाऊँ, बस फिर कमाने-धमाने की आफत से छुट्टी मिल जाय" । श्री वर्द्धमान ध्यान में खड़े थे। वहाँ आकर गोशाला बोला-" भगवान ! मैं आपका चेला बनना चाहता हूँ"।
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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