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________________ प्रभु-महावीर किन्तु, वे ये सारी तकलीफें शान्ति से सहन कर लेते थे। उन पर चाहे जैसा कष्ट पड़ता, किन्तु 'महावीर' अपने ध्यान से कभी न चूकते। एकबार वे चले जारहे थे। मार्ग में उन्हें कुछ ग्वाले मिले । वे कहने लगे-“महाराज ! आप इस रास्ते से न जाइये । आगे, एक भयङ्कर-वन आवेगा, वहाँ एक काला और मणिधर नाग रहता है । वह फुफकार से ही मनुष्यों के प्राण ले लेता है, अतः आप यदि इस रास्ते से न जाकर किसी और रास्ते से जाएँ, तो बड़ा अच्छा हो।" ___ किन्तु, श्री वर्द्धमान तो वीर-हृदय थे, वे भला संसार में किसी से कैसे डर सकते ? फिर वह भयङ्कर-वन अथवा भयङ्कर काला-नाग उन्हें क्या भयभीत कर पाता ? वे तो बिना किसी प्रकार का डर अनुभव किये, आगे की तरफ को बढ़ चले । आगे चलने पर एक घोर-जंगल आया। वहाँ जाने की किसी की भी हिम्मत न होती थी। उस वन में जहाँ देखो वहीं वृक्ष तथा लतादि की झाड़ी थी, जहाँ देखो वहीं वृक्षों के बीच में कचरा-काँटा भरा था। पत्तों के तो इस तरह ढेर लगे हुए थे, कि मार्ग भी नहीं मालूम होता था। किन्तु इन सारी आपत्तियों की परवाह न कर, दृढ़-निश्चयी श्री वर्द्धमान तो आगे की तरफ चले।
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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