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प्रभु-महावीर चिन्तन में ही व्यतीत करने लगे। आवश्यकता पड़ने पर शुद्ध अन्न-पानी ही ग्रहण करते थे। इस तरह एक-वर्ष व्यतीत होगया।
दूसरे वर्ष के प्रारम्भ से ही उन्होंने दान देना शुरू किया और बहुत-अधिक सोने की मुहरों का दान दिया। एक वर्ष तक दान देकर वे साधु-जीवन व्यतीत करने को तत्पर हुए।
मागशिर-विदी दसमी का दिन है, आज सारा क्षत्रियकुण्ड नगर उत्सव मना रहा है। नगर के बाहर ज्ञातशील नामक एक सुन्दर बाग है । वहाँ मनुष्यों की बड़ी भीड़ लग रही है । सब मनुष्य, वर्द्धमानकुमार के आने का मार्ग देख रहे हैं। ___कुछ समय के पश्चात् हजार ध्वजावाला इन्द्रध्वज वहाँ आया । जिसके पीछे नगाड़े तथा बाजेवाले आये । इनके पीछे नन्दिवर्धन राजा तथा उनके मन्त्रीगण पधारे। फिर सामन्त तथा सेठ-साहूकार आदि आये। इनके पीछे-पीछे एक सुन्दर पालकी आई, जिसमें श्री वर्द्धमानकुमार बैठे थे। इस पालकी के पीछे-पीछे, अन्तःपुर की रानियें तथा नगर की स्त्रिये गीत गाती हुई आती थीं। अहा ! वह भी कैसा