________________
प्रभु-महावीर अब तो आत्मा के उद्धार करने और जगत् के कल्याण करनेका समय आ पहुँचा है । अतः बड़े भाई साहब से आज्ञा लेकर मुझे वैसा ही करना चाहिये।
यह सोचकर वे नन्दिवर्धन के पास आये और उनसे दीक्षा लेने की आज्ञा माँगी। श्री बर्द्धमान का विचार सुनते ही नन्दिवर्धन के दुःख की कोई सीमा न रही। वे कहने लगे-" प्यारे भाई ! अबतक माता-पिता का वियोग मुझे दुःख दे ही रहा है, तिसपर अब तुम भी ऐसी बातें कर रहे हो ! भला सोचो तो, कि मैं तुम्हारा वियोग कैसे सह सकता हूँ ?" ___ बड़े-भाई के आग्रह से कुछ दिनों के लिये श्री वर्द्धमान ने अपने विचारों को स्थगित रखा। किन्तु उसी क्षण से उन्होंने अपने जीवन के सभी तरीकों में भारी रद्दोबदल कर दिया । वे साधु की तरह जीवन व्यतीत करने लगे।
___ अनेक प्रकार के सुख साधनों तथा नाना प्रकार की सुविधाओं से भरपूर राजमहल, खमा-खमा करते हुए सैकड़ों नौकर-चाकर और अत्यन्त गुणवती रानी यशोदा, इन सब का सहवास छोड़कर, श्री वर्द्धमान राजमहल के एकान्तभाग में निवास करने लगे । इस स्थान पर रहकर वे भविष्य की तयारिये करने और अपना अधिक समय आत्म