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प्रभु-महावीर माता-पिता धर्म-ध्यान करते हुए परलोकवासी होगये। श्री वर्द्धमानकुमार ने, यह दुःख शान्तिपूर्वक सहन किया । किन्तु, नन्दिवर्धन अत्यन्त दुःख करने लगे। उन्हें अत्यन्तदुःखी देख, श्री वर्द्धमान ने कहा-" भाई ! शोक क्यों करते हो ? जरा विचार से काम लो और अपने हृदय में हिम्मत रखो । हिम्मत के साथ मुसीबत का मुकाबला करना ही सच्ची -बीरता है।" भाई का यह उपदेश सुनकर, नन्दिवर्धन का दुःख कम हुआ और उन्होंने शोक करना छोड़ा । ____ अब, पिताजी की गादी खाली पड़ी थी। यद्यपि बड़े होने के कारण उस गादी पर नन्दिवर्धन का अधिकार था, तथापि नन्दिवर्धन ने अपनी बुद्धिमानी और गुण-ग्राहकता के कारण श्री वर्द्धमान से कहा-" वर्द्धमान ! तुम राज्य का उपभोग करो, वास्तव में तुम्हीं उसके लायक हो"। श्री वर्द्धमान बोले-" नहीं भाई साहब ! आप ही गादी की शोभा बढाइये, मेरे समीप राज्य का गुजर नहीं है। इसके बाद, सब ने एकत्रित होकर, नन्दिवर्धन को ही राजा बना दिया।
वर्द्धमानकुमार ने अब विचारा, कि माता-पिता के जीवित रहने तक दीक्षा न लेने की मेरी प्रतिज्ञा पूरी होगई।