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प्रभु-महावीर :५: श्री वर्द्धमान, माता-पिता के बड़े भक्त थे। वे अपने माता-पिता का चित्त कभी दुःखी न करते थे। यहीं तक नहों, वे प्राणिमात्र के कल्याण की भी भावना रखते थे। वे कभी किसी पर क्रोध नहीं करते, चित में कभी अभिमान का अंश भी न आने देते । सदा सरल-प्रकृति से रहते, सदैव सन्तोष रखते और अपनी मुखमुद्रा को सदैव शान्त तथा प्रसन्न रखते थे। जो कुछ बोलते, वह अत्यन्त-मीठा और दूसरों को सुख पहुँचानेवाला होता था। भला ऐसा स्वभाव किसे अच्छा न लगता ?
उन्हें संसारिक विषय-लालसा अपनी तरफ आकर्षित न कर पाती थीं
श्री वर्द्धमानकुमार बड़ी अवस्था के जवान होगये, किन्तु विवाह करने की उनकी ज़रा भी इच्छा न थी। तथापि, माता-पिता के अधिक आग्रह करने पर, उन्होंने यशोदा नामक राजकुमारी से अपना विवाह कर लिया। यशोदा के गुण और उनकी सुन्दरता अपार थी। कुछ समय के पश्चात् उनके एक कन्या-रत्न ने जन्म लिया, जिसका नाम रखा गया-प्रियदर्शना।
वर्द्धमानकुमार, अट्ठाइस-वर्ष के हुए। इस समय उनके