________________
प्रमु-महावीर ____ वर्द्धमानकुमार बहुत अधिक सुन्दर थे। उनके शरीर की बनावट अत्यन्त दृढ़ तथा सुडौल थी। उनके मन में मैल न था, पेट में पाप न था। वे दिन-प्रतिदिन गुणों में तरको ही करते जाते थे।
बर्द्धमानकुमार के नन्दिवर्धन नामक एक बड़े भाई, तथा सुदर्शना नामक एक बड़ी-बहिन भी थीं।
बडेमानकुमार, आनन्द से पाले-पोसे जाकर. बडे होने लगे। सात-वर्ष की अवस्था में, वे एक बार अपने मित्रों के साथ बाहर खेलने गये । वहाँ एक झाड़ के सामने बड़ाभारी साँप पड़ा था। उस साँप को देखकर और सब तो भाग गये, किन्तु वर्द्धमानकुमार ने उसे उठाकर दूर फेंक दिया। भय का तो वे नामभी न जानते थे।
खेल खेलने में वे अपनी तरह के एक ही थे।
आठ-वर्ष की अवस्था में उन्हें पढ़ने के लिये पाठशाला में भेजा गया। किन्तु वहाँ पहुँचने पर मालूम हुआ, कि उनकी अवस्था के हिसाब से उनकी समझ बहुत ज्यादा है और प्रत्येक बात को वे अपनी बुद्धि से ही समझ लेते हैं। अतः उन्हें कुछ सिखलाने की जरूरत न पड़ी, वे स्वयं ही प्रत्येक-बात सीख गये।