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________________ श्री पार्श्वनाथ की सवारी और उनका दौड़ाना जाननेवाले हो, धर्म तो हमारे समान तपस्वी ही जानते हैं।" कमठ का उत्तर सुनकर, पार्श्वकुमार को विचार हुआ, कि-"अहो, मनुष्य को कैसा अभिमान होता है ? बेचारे को दया को तो खबर ही नहीं है और सोचता है, कि मैं धर्म कर रहा हूँ!"। इसके बाद, उन्होंने अपने मनुष्यों से कहा-"इस लकड़ी को धूनी में से खींच लो और सावधानी से उसे बीच में से चीर कर,उसके दो हिस्से करो"। मनुष्यों ने वैसाही किया, तो उसमें से एक बड़ा साप निकला। उस साप का शरीर झुलस चुका था, इससे उसके शरीर में बड़ी तकलीफ हो रही थी। पार्श्वकुमार ने, उसे अपने मनुष्य द्वारा पवित्र-शब्द (नवकार मंत्र) सुनवाया । वह नाग, उसी क्षण मर गया ! कमठ, यह देखकर बड़ा लज्जित हुआ। उसे ऐसा जान पड़ा, कि पार्श्वकुमार ने मुझे सब लोगों के सामने फजीहत किया है । वह अत्यन्त क्रोधित हुआ। किन्तु, फिर भी उसने उसी प्रकार का तप जारी ही रखा। थोड़े ही दिनों में, ऐसा तप करते-करते वह मृत्यु को प्राप्त हुआ। मरकर वह एक प्रकार का देवता हुआ। वहा, उसका नाम हुआ मेघमाली और वह सर्प मरकर नागराज हुआ, जिसका नाम हुआ धरणेन्द्र ।
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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