________________
श्री पार्श्वनाथ उत्तर दिया, कि-" कमठ नामक एक बहुत बड़ा तपस्वी शहर से बाहर आया हुआ है । वह आपने चारों तरफ अग्नि मुलगाता है और सिर पर सूर्य की गर्मी सहन करता है; अर्थात वह पंचाग्नेि-तप करता है । लोग, उसी की पूजा करने के लिये इतने जल्दी-जल्दी जा रहे हैं।"
पार्श्वकुमार को, यह तमाशा देखने को इच्छा हुई। वे, अपने मनुष्यों के साथ वहाँ आये। वहाँ आकर उन्होंने देखा, कि कमठ ने अपने चारों तरफ मोटोमोटी लकड़ियं रखकर धूनी जला रखी थी।
चतुर पार्श्वकुमार ने, अपने ज्ञान से, इन लकड़ियों में एक बड़े-सर्प को जलते देखा । यह देखकर, उनका हृदय दवा से भर आया। वे बोल उठे-“अरे ! यह कितनी भारी नासमझी है ? केवल शरीर को कष्ट देने से कहीं सप होसकता है ? अज्ञानवश, पशु की तरह ठण्ड तथां गर्मी सहन करने से क्या लाभ निकल सकता है ? तप इत्यादि, धर्म के अंग अहिंसा के बिना फिजूल हैं। अहिंसा ही सब से बड़ा धर्म है।"
पार्श्वकुमार की यह बात सुनकर, शरीर को कष्ट देने में ही धर्म माननेवाला कमठ बोला-“हे राजकुमार ! धर्म के विषय में तुम क्या जानो ? तुम तो हाथी-घोड़ों