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श्री पार्श्वनाथ पार्श्वकुमार को विदा किया। बिदा करते समय राजा प्रसेनजित् बोले-" हे प्रभु ! राजा अश्वसेन के चरणों में प्रणाम करने के लिये मैं भी आपके साथ चलना चाहता हूँ" । पार्श्वकुमार ने, बड़ी प्रसन्नता से उनकी यह बात स्वीकार करली, अतः राजा प्रसेनजित् प्रभावती को अपने साथ लेकर काशी आये ।
: ११ राजा प्रसेनजित् ने, अश्वसेन राजा को राज-रीति के अनुसार नमस्कार करके अपनी सारी हकीकत कही। राजा प्रसेनजित् की बात सुन लेने के बाद, राजा अश्वसेन ने कहा- ये कुमार, प्रारम्भ से ही वैराग्य-प्रय हैं, अतः अबतक हम यही नहीं जान सके हैं, कि वे क्या करेंगे । हमारी, यह बड़ी लालसा है, कि कब पाश्चकुमार किसी योग्य-कन्या से अपना विवाह करें? यद्यपि, उन्हें दिवाह करना पसन्द नहीं है, तथापि तुम्हारे आग्रह से प्रभावती के साथ उनका विवाह कर दूंगा ।"
राजा अश्वसेन, प्रसेनजित् राजा को साथ लेकर पायकुमार के पास गये और उनसे कहा, कि-" पुत्र ! प्रभावती को तुमसे बड़ा ही प्रेम है । तुमसे विवाह करने के लिये उसने बड़े-बड़े कष्ट उठाये हैं। सचमुच तुम्हारे लिये इससे अधिक योग्य-कन्या कोई है ही नहीं । इस