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श्री पार्श्वनाथ
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राजा अश्वसेन, अपनी सभा में बैठे थे, धर्म- चर्चा हो रही थी, कि इतने ही में सिपाही आया और प्रणाम करके बोला - " महाराज ! दरवाजे पर एक दूर देश से आया हुआ मनुष्य खड़ा है और वह आपसे कुछ अर्ज करना चाहता है । " राजा ने कहा- "उसे जल्दी भीतर भेजो " ।
पुरुषोत्तम भीतर आया । उसने राजा को प्रणाम करके सब हाल सुनाया। पुरुषोत्तम के मुख से यह हाल सुनते ही, राजा अश्वसेन अत्यन्त नाराज हुए और बोले - " यवनराजा की क्या मजाल है, कि वह प्रसेनजित् को परेशान करे ? मैं अभी अपनी सारी सेना लेकर कुशस्थल जाता हूँ | "
उसी समय लड़ाई के नगाड़े बजाये गये और सारी फौज इकट्ठी होने लगी ।
पार्श्वकुमार, अपने मित्रों के साथ आनन्द से खेल रहे थे । उन्होंने भी लड़ाई के नगाड़ों की आवाज़ सुनी और सेना की चहल-पहल देखी । यह देखकर, उन्होंने अपना खेल एकदम छोड़ दिया और अपने पिता के पास आये । वहाँ आकर उन्होंने देखा, कि सेनापतिलोग लड़ाई के लिये तयार हुए बैठे हैं। उन्होंने अपने पिताजी को