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श्री पार्श्वनाथ
मेरे साथ प्रभावती का विवाह न करें ? मैं देखता हूँ, कि प्रभावती अपना विवाह पार्श्वकुमार के साथ कैसे करेंगी ? "
यह सोचकर, यवनराजा ने अपनी सेना तयार की और कुशस्थल नगर पर चढ़ाई करदी | थोड़े ही दिनों में फौज कुशस्थल आ पहुँची और उसने नगर के चारों तरफ अपना घेरा डाल दिया । वह वेरा इतना सख्त था, कि नगर में से कोई भी मनुष्य बाहर नहीं जा सकता था ।
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राजा प्रसेनजित् अत्यन्त चिन्ता में पड़ गये । वे सोचने लगे, कि इतनी बड़ी सेना से हमारा बचाव कैसे हो ? हाँ, यदि किसी तरह राजा अश्वसेन की सहायता हमें मिल सके, तो अवश्य ही हम बच सकते हैं । किन्तु, राजा अश्वसेन तक मदद का सन्देश पहुँचावे कौन ? विचारते - विचारते उन्हें अपने मित्र पुरुषोत्तम का नाम याद आया ।
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राजा प्रसेनजित ने, पुरुषोत्तम को बुलाया और उससे अपना विचार कहा । पुरुषोत्तम, मित्र का काम करने को तैयार ही था, अतः अपने जीवन की चिन्ता न करके, रात्रि के समय वह चुपचाप नगर से बाहर निकल गया और जितना भी जल्दी हो सका, काशी पहुँचा ।