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श्री पार्श्वनाथ
राजा अश्वसेन बोले - " रानीजी, अँधेरी रात में कालासाँप अपनी आँखों से तो कभी नहीं देखा जा सकता । आपको जो वह दिखाई दिया है, तो यह अवश्य ही आपके गर्भ का प्रभाव है । मुझे मालूम होता है, कि निश्चय ही आपके एक प्रतापी - बालक जन्म लेगा
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समय आने पर, वामादेवी के उदर से एक पुत्ररत्न ने जन्म लिया । उसकी सुन्दरता का वर्णन नहीं किया जासकता । उस बालक के गुण कोई गिन नहीं सकता और न यह जाना जा सकता था, कि उसमें कितना ज्ञान है ।
उनका नाम रखा गया पार्श्वकुमार | भला, राजा के कुमार को किस बात की कमी रह सकती है ? उनकी सेवा में अनेक दास तथा दासी हाज़िर रहती थीं। इस प्रकार आनन्दपूर्वक पाले-पोसे जाकर, श्री पार्श्वकुमार बड़े हुए | बड़े होने पर मालूम हुआ, कि उनकी शक्ति अपार है । उनके पराक्रम की सारी दुनिया में तारीफ होने लगी ।
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इस समय, कुशस्थल नामक एक और बड़ा नगर था । इस नगर के राजा का नाम था प्रसेनजित् । प्रसेन
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