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कर ले, उससे ज़रा भी भय मत खा"।यों विचार करते ही करते, उनका मन पवित्र होने लगा और थोड़ी ही देर में वह इस सीमा तक पवित्र होगया, कि उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति होगई।
इधर गर्मी से वह चमड़ा बहुत सिकुड़ गया और उसके दबाव से मेतार्यमुनि की दोंनों आखें बाहर निकल पड़ी तथा खोपड़ी भी फट गई। समता के सागर मेतार्य मुनिराज निर्वाणपद को प्राप्त होगये। ____ इसी समय, वहाँ आकर एक लकड़हारिनि ने अपना लकड़ी का बोझ धड़ाम से जमीन पर पटका । इस अचानक धड़ाके से क्रौंचपक्षी डर उठा और उसने बीट कर दी । सुनार ने देखा, कि उस बीट में सोने की गुरियाएँ मौजूद हैं। यह देखकर, वह कॉप उठा और सोचने लगा, कि-" मुझ दुष्ट ने यह क्या किया ? निर्दोष-मुनिराज के प्राण अकारण ही क्यों ले लिये ? किन्तु अब क्या होसकता है ? यदि राजा को यह बात मालूम होगई, तो वह मुझे अवश्य ही प्राण-दण्ड देगा।" ___यों सोचकर, उसने उन्हीं मुनिराज के कपड़े पहन लिये
और साधु बनकर चल दिया। फिर अत्यन्त कठिन संयम का पालन करके, उसने अपने आत्मा का कल्याण किया।
सच हैः " मेतार्य मुनिवर ! धन्य-धन्य तुम अवतार !"