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________________ गुरियाएँ कहाँ चली गई ? उसके हृदय में इससे भारी धक्का लगा। उसने इधर-उधर सब जगह देखा, किन्तु कहीं भी उनका पता न चला। उसे ऐसा सन्देह हुआ, कि अवश्य ही वे साधुजी गुरियाओं को उठा लेगये । अतः उन्हें पकड़कर, उनकी तलाशी लेने का उसने निश्चय किया। मुनिराज तो एक महीने के उपवासी थे ही, अतः बे अभी तक आँगन से बाहर भी न निकल पाये थे । सुनार ने उन्हें पकड़कर खड़े किया और पूछा, कि-"सोने की गुरियाएँ कहाँ है ? "। मुनिराज ने विचार किया. कि यदि मैं क्रौंचपक्षी की बात कहता हूँ, तो उस बेचारे के प्राण जावेंगे, अतः शान्त रहना ही उचित है । उन्होंने सुनार के प्रश्न का कोई उत्तर न दिया, जिससे उसकी शंका और भी पुष्ट होगई। उसने दो-तीन बार मुनि से पूछा, किन्तु कुछ भी जवाब न मिला । अब तो सुनार के क्रोध की सीमा न रही। पास ही एक गीले-चमड़े का टुकड़ा पड़ा था, उसे कसकर मेतार्य मुनि के सिरपर बाँध दिया। किन्तु मेतार्यमुनि तो समता के भण्डार जो ठहरे, वे कुछ भी न बोले। सुनार ने उन्हें पकड़कर धूप में बैठा दिये, फिर भी वे शान्त ही बने रहे । धूप की गर्मी से वह चमह। सिकुड़ने लगा, जिससे उनके सिर में पीड़ा बढ़ने लगी । इस कष्ट के समय, अत्यन्त धैर्य के साथ उन्होंने अपने मन में कहा, कि-" हे जीव ! सिर पर पड़ा हुआ दुःख शान्तिपूर्वक सहन
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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