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४ - मुनि श्री मेतार्य
ठीक दोपहर का समय, गर्मी के दिन होने से आग के समान गर्मी बरस रही थी। इसी समय, राजगृही नगरी में एक - मास का उपवास किये हुए एक साधु, भिक्षा के लिये निकले । धीमी - चाल से, नीचे की तरफ दृष्टि किये हुए, वे एक सुनार के घर के सामने पहुँचे । वह सुनार, हार बनाने के लिये, सोने की गुरिया तयार कर रहा था । मुनिराज को अपने घर के सामने आते देख, वह बड़ा प्रसन्न हुआ और दोनों हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगा, कि – “ हे मुनिराज ! पवित्र करिये, और मेरे यहाँ से भिक्षा ग्रहण धर्मलाभ ' बोलकर, मुनिराज उसके घर में
मेरा आँगन कीजिये " । पधार गये ।
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सुनार, सोने की गुरियाएँ जहाँ की तहाँ छोड़कर, रसोई में गया और भिक्षा देने की तयारी करने लगा । इसी समय, वहाँ एक क्रौंचपक्षी आया और उन सोने की गुरियाओं को निगल गया । उन्हें खाकर, वह पास ही के एक वृक्ष की डाली पर जा बैठा । मुनिराज, यह दृश्य देखते रहे ।
सुनार, रसोई में से मोदक - मिठाई आदि का थाल लेकर बाहर निकला और बड़ी उच्च भावना से मुनिराज को वह भिक्षा बहराई । भिक्षा लेकर मुनिराज चल दिये । इधर सुनार दूकान पर आया । वहाँ आकर देखता है, तो सोने की गुरियाओं का पता नहीं । उसे आश्चर्य हुआ, कि यहाँ से सोने की
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