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खिड़की में बैठी हुई बरात को देख रही हैं। वे, दूर ही से श्री नेमिनाथ को देखकर, मन में अत्यन्त प्रसन्न हो रही हैं । वे विचारती हैं, कि मेरा भाग्य बड़ा ही जबरदस्त है, अन्यथा ऐसा पति कैसे मिल सकता था ? इतने ही में, उनकी दाहिनी-आँख फरकने लगी तथा दाहिनी-भुजा भी उसी समय फरक उठी । यह अशकुन देखकर, उनके चित्त में शंका पैदा हुई, कि अवश्य ही कुछ बुरा होनेवाला है । इस चिन्ता से, उनका चेहरा फीका पड़ गया। उन्होंने, अपनी सखियों से, अपने चित्त की यह बात कही। सखिये वोलीं-बहिन! अकारण ही चिन्ता क्यों करती हो ? तुम्हारा विवाह, अच्छी तरह पूर्ण हो जावेगा।
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बरात, चलते-चलते राजा उग्रसेन के घर के सामने पहुंची। वहाँ पहुँचने पर, एकदम जानवरों का चीत्कार सुनाई दिया । बेचारे बकरे, मेंढे, हरिण, तीतर, इत्यादि पशुपक्षी आर्त-स्वर से चिल्ला रहे थे। श्री नेमिनाथ ने, अपने सारथि से पूछा, कि-सारथि ! इतना अधिक शब्द, किस चीज का सुनाई दे