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________________ जगडूशाह नहीं पड़ा । उस समय, महँगाई की यह दशा थी, कि चार-आने के सिर्फ तेरह-चने मिलते थे। अपने बच्चों को भूनकर खाने के-से बीभत्स-कार्य के उदाहरण भी इसी समय मिलते हैं। ऐसे भयङ्कर-दुष्काल में से बचाने के लिये, जगड़शाह ने देश-देश के राजाओं को अनाज उधार दिया। किसी को बारह-हजार बोरी, किसी को अठारह-हजार बोरी, किसी को इक्कीस-हजार और किसी को बत्तीस-हजार बोरी। इस तरह, नौलाख और निन्नानवेहजार बोरी अनाज उन्होंने राजालोगों को उधार दिया। किन्तु, वीरों का साहस क्या इतना ही कर के समाप्त होसकता है ? जगड़शाह ने इसके बाद एकसौबारह सदाव्रतशालाएँ खोलीं, जिनमें सदैव पाँचलाख मनुष्य भोजन करते। ___ इस मौके पर, उन्होंने खुले हाथ होकर इतना अधिक दान दिया, कि लोग उन्हें कुबेर कहने लगे। वास्तव में, जगडूशाह की यह उदारता धन्य है। . उनकी इस उदारता ने, समस्त जैन-धर्म को संसार में चमकाया। लोगों को यह बात मालूम होगई,
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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