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जग शाह
चुप हो रहा और उसने आकर जगडूशाह से
सन्धि कर ली ।
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जगड़शाह के पास अपार धन था, किन्तु फिर भी उनमें अभिमान का नाम न था। प्रभु - पूजा और गुरु-भक्ति में भी वे एक ही थे। एक बार गुरुजी ने उनसे कहा, कि - " जगड़ ! तीन वर्ष का भयङ्कर - अकाल पड़नेवाला है, अतः तुम अपने धन का अधिक से अधिक सदुपयोग करना " । जगडूशाह से इतना कह देना ही काफी था । उन्होंने, देशविदेश के प्रत्येक बड़े-बड़े शहरों में, अनाज खरीदखरीदकर कोठे भरवा दिये और उन पर लिखावा दिया – “ गरीबों के लिये " ।
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ठीक संवत तेरह सौ तेरह का प्रारम्भ होते ही भयङ्कर - दुष्काल पड़ा । लोग अन्न अन्न चिल्लाकर मरने लगे । यह दुष्काल तीन वर्ष तक रहा । इन तीन वर्षो में से भी संवत तेरह सौ पन्द्रह के साल में तो यह चरम सीमा पर जा पहुँचा था । ' तेरह सौ पन्द्रह ' के अकाल के नाम से यह अकाल मशहूर है । कहा जाता है, कि इसके बाद फिर कभी वैसा दुष्काल