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जगड़शाह
जयन्तसिंह बोले-मैं अपने स्वामी की प्रतिष्ठा की रक्षा के लिये, इसके बदले में तीनलाख दीनार देने से भी नहीं चूकूँगा। ____ यह सुनकर, वह मुसलमान-व्यौपारी ठण्डा पड़ गया। जयन्तसिंह ने तीन-लाख दीनार देकर, वह पत्थर खरीद लिया और उसे जहाज में डालकर, भद्रेश्वर ले आया।
किसी ने जाकर जगड़शाह से यह समाचार कहा, कि तुम्हारा मुनीम तो बड़ा कमाऊ है। तीनलाख दीनार देकर, उनके बदले में एक पत्थर खरीद लाया है।
जगड़शाह ने उत्तर दिया, कि वह धन्यवाद का पात्र है, जो उसने मेरी इज्जत बढ़ाई। ___इस के बाद, जगड़शाह बड़ी धूम-धाम से जयन्तसिंह तथा उस पत्थर को अपने घर ले आये । जयन्तसिंह ने सब कथा कह सुनाई और अन्त में कहा, कि-" आपकी प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिये ही मैंने इतना रुपया खर्च कर डाला। अब, आपको जो दण्ड देना उचित प्रतीत हो, मुझे दे सकते हैं।" जगड़शाह बोले, कि-" जयन्तसिंह ! क्या तुम पागल होगये हो ? तुमने तो मेरी प्रतिष्ठा बढ़ाई है,