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जगडुशाह
जगड़, इसी प्रकार की चिन्ता किया करता था, कि एक दिन उसके भाग्य ने जोर मारा। शहर के दरवाजे पर, उसने बकरियों का एक झुण्ड देखा । इस झुण्ड में एक बकरी के गले में मणि बँधी हुई थी। मणि बड़ी मूल्यवान थी, किन्तु उस चरवाहे ( गवली) का इस बात का क्या पता ? उसने तो काँच समझकर ही, बकरी के गले में बाँध रखी थी। ___ जगड़ ने विचार किया, कि-" यदि यह मणि मुझे मिल जाय, तो संसार में मैं अपने सारे इच्छितकार्य कर सकूँ । अतः मैं इस बकरी को ही खरीदे लेता हूँ, जिसमें उसे सन्देह भी न हो और मुझे मणि मिल जाय ।" यों सोचकर, उसने थोड़े ही दामों में वह बकरी खरीद ली। इसके बाद, उसे धन की कोई कमी न रही। ___ उसने देश-विदेश में व्यौपार करना शुरू किया । पृथ्वी पर तो उसका व्यौपार खूब फैल ही गया, किन्तु समुद्र पर होनेवाले व्यौपार में भी, उस समय वह सब से आगे होगया । दूर-दूर के देशों में, जगड़ के जहाज जाते और वहाँ पर माल का लेन-देन करके वापस आते थे।