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जगड़शाह ये लड़के, अभी बीस-वर्ष की अवस्था के भीतर ही थे, कि सोलक-श्रावक का देहान्त होगया। तीनों भाइयों को इससे बड़ा दुःख पहुँचा। किन्तु शोक करने से क्या लाभ हो सकता था ? जगड ने धीरज धारण करके, घर का सारा काम-काज अपने सिर पर उठा लिया।
तीनों भाइयों में जगड़ बड़ा चतुर था। उसका दिल बड़ा विशाल तथा हृदय प्रेम से लबालब था। दान करने में तो, उसकी जोड़ी का कोई था ही नहीं। कोई भी दीन-दुःखी अथवा मँगत-भिखारी, उसके दरवाजे आकर खाली हाथ न जाने पाता था।
ह बात समझता था, कि धन आज है और कल नहीं, अतः उससे लाभ उठा लेना चाहिये। यही कारण था, कि दान देने में वह कभी पीछे नहीं रहता। __धन, धीरे-धीरे कम होने लगा। अब जगड़ को यह चिन्ता होने लगी, कि-" क्या कभी ऐसा भी समय आसकता है, जब मेरे दरवाजे से किसी याचक को खाली-हाथ जाना पड़े ? हे नाथ ! ऐसा मौका मत लाना।"