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वाया, किन्तु उसने कह दिया, कि चातुर्मास में, विवाह नहीं हो सकता । सब ने, ब्राह्मण से कहा, कि चाहे जो हो, किन्तु विवाह का दिन तो अवश्य ही नज़दीक ढूंढ निकालो । इसमें देर करना उचित नहीं प्रतीत होता।
ब्राह्मण ने, श्रावण सुदी छठ का दिन शोध निकाला और सब ने उसे स्वीकार कर लिया।
श्री नेमिनाथ के विवाह की तैयारिया होने लगी, दोनों घरों में तोरण बांधे गये। मंगलगान होने लगे और सारा शहर खूब सजाया गया। इस तरह, विवाह का दिन आ पहुंचा।
रात्रि के व्यतीत होते ही, गान-वाद्य होने लगा। मीठे-मीठे स्वर में सहनाई बजने लगी। मंगल-चौघड़ियों की गड़गड़ाहट सुनाई देने लगी। इस मीठे-संगीत के शब्द से, सब लोग जाग उठे। स्त्रियों ने, मंगल-गीत गानाप्रारम्भ कर दिया। विवाह के लिये, श्री नेमिनाथजी सजाये जाने लगे। उनके सिर पर, एक सुन्दर सफेद-छत्र धरा गया। दोनों तरफ, सफेद-चवर दुलने लगे। किनारीदार, दो शुद्ध तथा सफेद-वस्त्र उनके शरीर पर धारण कराये