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श्रीकृष्ण महाराज ने भी, विवाह करने के बारे में, उनसे बहुत कुछ कहा।
विवाह का, इतना अधिक आग्रह होते देख, श्री नेमिनाथ ने विचारा, कि “ सगे-सम्बन्धियों तथा कुटुम्बियों को कितना अधिक मोह है ? वे, जिस प्रकार का जीवन स्वयं व्यतीत करते हैं, उसी प्रकार का जीवन बिताने का मुझ से भी आग्रह कर रहे हैं। किन्तु, मुझे तो इस जीवन की अपेक्षा कहीं अधिक ऊँचा-जीवन विताना है। फिर भी, अभी इन स्नेहियों की बात मुझे स्वीकार कर लेनी चाहिये
और मौका पाते ही, अवश्य आत्मोद्धार का प्रयत्न करना चाहिये।" ऐसा विचारकर, उन्होंने उन सब का आग्रह स्वीकार कर लिया, जिससे सब को बड़ी प्रसन्नता हुई।
श्रीकृष्ण ने, श्री नेमिनाथ के योग्य कन्या तलाश करना प्रारम्भ कर दिया । जाँच करने पर, राजा उग्रसेन की पुत्री, राजमती, उनके सर्वथा योग्य मालूम हुई। श्री नेमिनाथ का, राजमती के साथ, विवाह-सम्बन्ध पक्का हो गया।
ब्राह्मण को बुलाकर, उससे लग्न का दिन दिख